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पटना, 5 दिसंबर (चेतना न्यूज़)| पटना के ज्ञान भवन में आयोजित 10 दिवसीय पटना पुस्तक मेले के तीसरे दिन सोमवार को कवि, लेखक शिवदयाल के उपन्यास 'एक और दुनिया होती' पर परिचर्चा का आयोजन किया गया तथा लेखिका शिखा वाष्र्णेय से बातचीत की गई। इस दौरान नुक्कड नाटक का आयोजन भी किया गया। सेंटर फॉर रीडरशिप डेवलपमेंट (सीआरडी) और कला, संस्कृति एवं युवा विभाग द्वारा आयोजित 24वें पटना पुस्तक मेले के मुख्य मंच पर 'एक और दुनिया होती' पर परिचर्चा में भाग लेते हुए कवि शैलेश्वर सती प्रसाद ने कहा कि शिवदयाल का यह उपन्यास आंदोलन और उससे उपजे अंर्तद्वंद्व पर आधारित है।

उन्होंने कहा कि लेखक ने अपने पात्रों के माध्यम से बहुत बारीकी से स्थितियों का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण किया है। इसमें कई संदर्भ समाहित हैं। उन्होंने कहा कि यह उपन्यास अपनी भाषा के स्तर के शीर्ष को छूता है। 

कवि डॉ़ निखिलेश्वर प्रसाद वर्मा ने उपन्यास के विषय में कहा कि लेखक अपने विचारों को पाठकों पर थोपा नहीं है। उन्होंने कहा कि इस उपन्यास ने कई सामाजिक विषयों को सपर्श किया और लेखक ने इसके साथ न्याय भी किया है। 

डॉ़ वर्मा ने कहा कि यह उपन्यास एक साथ कई विचारधाराओं को लेकर चला है, परंतु किसी विचारधारा के अधीन नहीं है। 

प्रसिद्घ शायर संजय कुमार कुंदन ने इस मौके पर कहा, "लेखक शिवदयाल की यह औपन्यासिक कृति कल्पनाओं पर आधाारित नहीं है। इस उपन्यास को पढ़ना यथार्थ की यात्रा करने के समान है।" 

उन्होंने इस उपन्यास को जयप्रकाश आंदोलन के वक्त का दस्तावेज बताया। 

इस परिचर्चा में लेखक सतीश प्रसाद सिन्हा, पत्रकार अनिल विभाकर, कथाकार व नाटककार भगवती प्रसाद द्विवेदी ने भी अपने विचार रखे। 

उपन्यास के विषय में लेखक शिवदयाल ने कहा कि जब रचनाकार 'भोक्ता' और 'साक्षी' रहता है, तभी रचनाएं जीवंत होती हैं। उन्होंने कहा कि इस उपन्यास को लिखने में 12 वर्ष लगे और पांच वर्ष तक प्रकाशकों के यहां घूमता रहा। 

लंदन से आईं पत्रकार और लेखिका शिखा वाष्र्णेय से लेखिका मनीष प्रकाश ने 'लंदन में हिंदी' विषय पर बातचीत की। 

शिखा वाष्र्णेय ने भूमंडलीकरण में हिंदी भाषा के प्रश्न पर कहा कि बिहार में इस भाषा का भविष्य अच्छा दिखता है, लेकिन लंदन में ऐसा नहीं है। उन्होंने कहा कि पुरानी पीढ़ियां तो हिंदी साहित्य पढती हैं, लेकिन आज के बच्चों में इस भाषा को लेकर रुचि नहीं है। 

मॉस्को से पत्रकारिता में स्वर्णपदक प्राप्त करने वाली पत्रकार ने बताया कि हिंदी वालों से अधिक अहिंदी भाषी हिंदी सिखना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि बच्चों के लिए रुचिकर साहित्य की जरूरत है। 

अपने सपने के बारे में उन्होंने बताया, "मैंने कविताएं, नज्में और ब्लॉग लिखे, लेकिन उपन्यास लिखना मेरा सपना है।" 

इसके अलावा पुस्तक मेले के तीसरे दिन स्कूली छात्रों ने नाटक 'चंडालिका' की प्रस्तुति दी। रविन्द्रनाथ टैगोर लिखित यह नाटक सामाजिक कुरीतियों पर प्रहार करता है। अपने संगीतमय नाटक से बच्चों ने पुस्तकप्रेमियों का मन मोह लिया। इस नाटक का निर्देशन जॉय मित्रा ने किया था, जबकि नेहा, राजनंदिनी, अदिति, रिया ने इसमें प्रमुख भूमिकाएं निभाई। 

उल्लेखनीय है कि 11 दिसंबर तक चलने वाले इस पुस्तक मेले में 110 प्रकाशकों हिस्सा ले रहे हैं। 


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