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उज्जैन, 14 मई (चेतना न्यूज़ )| प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यहां शनिवार को ग्लोबल वार्मिग और आतंकवाद को दुनिया के दो बड़े संकट बताते हुए कहा कि 'दुनिया को कॉन्फ्लिक (विवाद) के प्रबंधन (मैनेजमेंट) पर सेमिनार आयोजित कराने पड़ रहे हैं, फिर भी रास्ता नहीं मिल रहा है, जबकि इनहेरेंट कॉन्फ्लिकट मैनेजमेंट हमें विरासत में मिला है।" मध्यप्रदेश के उज्जैन में चल रहे सिंहस्थ कुंभ के दौरान निनौरा में आयोजित तीन दिवसीय 'अंतर्राष्ट्रीय विचार कुंभ' के समापन अवसर पर मोदी ने श्रीलंका के राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना की मौजूदगी में सार्वभौम अमृत संदेश (विचार कुंभ का घोषणापत्र) जारी किया और निष्कर्षो को अमृतबिंदु नाम दिया। उन्होंने कहा, "हम ऐसे समाज के लोग हैं, जहां विविधताएं हैं, कभी कभी बाहर के लोगों को कॉन्फ्लिक्ट भी नजर आता है। दुनिया कॉन्फ्लिक्ट मैनेजमेंट को लेकर कई सेमिनार करा रही है, लेकिन रास्ते नहीं मिल रहे हैं। हम वे लोग हैं, जिन्हें इनहेरेंट कॉन्फ्लिक्ट का मैनेजमेंट सिखाया गया है। वरना हम राम और प्रहलाद तथा सीता और मीरा को नहीं पूज सकते थे। हम हठवादिता से बंधे लोग नहीं हैं, बल्कि दर्शन से जुड़े लोग हैं। हमारा दर्शन जीवन जीने की प्रेरणा देता है।" प्रधानमंत्री ने साधु-संतों और अखाड़ों के प्रमुख से आह्वान किया कि मंथन से जो 51 अमृतबिंदु निकले हैं, उन पर सभी परंपराओं के अंदर रहकर प्रतिवर्ष एक सप्ताह का विचार कुंभ अपने भक्तों के बीच करने पर विचार जरूर करें। उसमें यह बताया जाए कि पेड़ क्यों लगाना चाहिए, बेटी को क्यों पढ़ाना चाहिए, धरती को स्वच्छ क्यों रखना चाहिए, नारी का सम्मान क्यों करना चाहिए। प्रधानमंत्री मोदी ने आगे कहा, "इस समय दुनिया दो संकटों- ग्लोबल वार्मिग और आतंकवाद से गुजर रही है। इन दो संकटों की मूल वजह क्या है, इसे जानना होगा। इन दो बड़े संकटों का समाधान विस्तारवाद नहीं है, क्योंकि युग बदल चुका है। हमारा रास्ता तुम्हारे रास्ते से ज्यादा अच्छा है, यही तो विवाद का कारण है।" प्रधानमंत्री ने कहा, "हमारे यहां दूसरों के लिए त्याग को आनंद से जोड़ा गया है। हम उस संस्कार सरिता से निकले हुए लोग हैं, जहां भिक्षु भी भिक्षा देने वाले और न देने वाले दोनों का 'भला हो' कहता है। यह उस संस्कार परंपरा का परिणाम है, इसमें सबके कल्याण का भाव है। यह भाव हमारी रगों में भरा पड़ा है।" उन्होंने याद दिलाया कि देश में अनाज के संकट के समय तत्कालीन प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री ने देश से सप्ताह में एक दिन उपवास रखने का आग्रह किया था और जनता ने उसे करके दिखाया था। इसी तरह उनके (मोदी) आग्रह पर एक करोड़ से ज्यादा परिवारों ने गैस सब्सिडी छोड़ दी। कुंभ को 'नागा साधु का मेला' की पहचान दिए जाने पर प्रधानमंत्री ने तल्ख टिप्पणी की और कहा कि कुंभ की एक ही पहचान बना दी गई है- नागा साधु, यह सब इसलिए हुआ है, क्योंकि हमने अपनी ब्रांडिंग ठीक तरह से नहीं की। उन्होंने कहा, "दुनिया के लोग हमें अनअर्गनाइज्ड (असंगठित) कहते हैं, क्योंकि दुनिया के सामने हमें अपनी बात सही तरीके से रखने की आदत नहीं रही। हमें भारत को वैश्विक रूप में प्रदर्शित करने के लिए विश्व जिस भाषा को समझता है, उसे उसी भाषा में समझाने की जरूरत है।" मोदी ने कुंभ के आयोजन और भारत के चुनाव के प्रबंधन को दुनिया के लिए 'केस स्टडी' का विषय बताया। उन्होंने कहा कि आदिकाल से चले आ रहे कुंभ में मनीषी 12 वर्ष में एक बार प्रयाग में कुंभ के मौके पर इकट्ठा होते थे, विचार-विमर्श करते थे और बीते वर्ष की सामाजिक स्थिति का अध्ययन करते थे। इसके साथ ही समाज के लिए अगले 12 वर्षो की दिशा क्या होगी, इसे तय करते थे। मोदी ने कहा कि यह एक अद्भुत सामाजिक संरचना थी, मगर धीरे-धीरे इसका रूप बदला। अनुभव यह है कि परंपरा तो रह जाती है, मगर प्राण खो जाते हैं। कुंभ के साथ भी यही हुआ, अब कुंभ सिर्फ डुबकी लगाने, पाप धोने और पुण्य कमाने तक सीमित रह गया है। श्रीलंका के राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना ने विचार कुंभ में आमंत्रित करने के लिए प्रधानमंत्री मोदी और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को धन्यवाद दिया। उन्होंने कहा कि भारत और श्रीलंका के बीच गहरे सांस्कृतिक संबंध हैं। धार्मिक और सांस्कृतिक संबंध व उनसे जुड़े विषयों पर दोनों देशों के बीच गहरी समझ है। इससे पहले, प्रधानमंत्री मोदी विशेष विमान से इंदौर पहुंचे, हवाईअड्डे पर मुख्यमंत्री शिवराज ने उनकी अगवानी की। मोदी यहां से श्रीलंका के राष्ट्रपति सिरिसेना के साथ उज्जैन के निनौरा के लिए रवाना हुए। निनोरा में हुए विचार कुंभ की अध्यक्षता लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने की। मंच पर छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह, झारखंड के मुख्यमंत्री रघुवर दास के अलावा केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, थावरचंद गहलोत और मेजबान मुख्यमंत्री शिवराज भी उपस्थित रहे।

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