Aarti Rules: संध्या आरती को चारों दिशाओं में दिखाना क्यों होता है जरूरी, जानिए क्या है इसका महत्व

हिंदू धर्म में पूजा-पाठ और आरती करने के लिए कई नियमों के बारे में बताया गया है। यदि इन नियमों का व्यक्ति सही तरीके से पालन करें, तो जातक के जीवन में सुख-समृद्धि और सौभाग्य का आगमन होता है। आरती के बिना कोई भी पूजा अधूरी मानी जाती है। कुछ लोग आरती करने के बाद दीपक पौधे के पास रखते हैं, जोकि वास्तु के हिसाब से शुभ माना जाता है। इसके साथ ही मंदिर में संध्याकाल की आरती के बाद इसकी लौ को चारों दिशाओं में दिखाया जाता है। लेकिन क्या आप आरती के चारों दिशाओं में दिखाने का महत्व जानते हैं। अगर आपका जवाब न है, तो आज हम आपको इस आर्टिकल के जरिए इसके बारे में पूरी जानकारी देने जा रहे हैं।इसे भी पढ़ें: Weekly Love Horoscope 13 to 19 May 2024 | ज्योतिषीय भविष्यवाणी, इन 3 राशियों का प्रेम जीवन शांतिपूर्ण रहेगाआरती की लौ उत्तर दिशा में दिखानाज्योतिष शास्त्र के मुताबिक उत्तर दिशा में भगवान शिव और कुबेर देव का वास माना जाता है। धार्मिक शास्त्रों में कुबेर देव को धन-संपत्ति का देवता माना गया है। वहीं यह दिशा भोलेनाथ को भी अतिप्रिय है। शाम को इस दिशा में आरती की लौ दिखाने से व्यक्ति को शुभ परिणाम मिलते हैं और सुख-समृद्धि का आगमन होता है।आरती की लौ पश्चिम दिशा में दिखानावहीं शनिदेव की दिशा पश्चिम दिशा मानी जाती है। इस दिशा में संध्या के समय आरती दिखाने से जातक पर हमेशा शनिदेव की कृपा दृष्टि बनी रहती हैं। साथ ही व्यक्ति को शनिदोष से भी छुटकारा मिलता है।आरती की लौ पूर्व दिशा में दिखाना पूर्व दिशा भगवान श्रीहरि विष्णु की दिशा मानी जाती है। इस दिशा में संध्या को आरती की लौ दिखाना चाहिए। इससे व्यक्ति पर श्रीहरि की कृपा दृष्टि बनी रहती है और व्यक्ति के सुख-सौभाग्य में वृद्धि होती है।आरती की लौ दक्षिण दिशा में दिखानाज्योतिष में दक्षिण दिशा पितरों और यम देव की मानी जाती है। इस दिशा में आरती दिखाने से पितृ प्रसन्न होते हैं और व्यक्ति को अकाल मृत्यु के भय से छुटकारा मिलता है। इसलिए दक्षिण दिशा में संध्य़ा आरती दिखाएं।आरती करने के नियमआरती करने के दौरान व्यक्ति को एक स्थान पर खड़े होकर आरती करनी चाहिए। साथ ही आरती करते समय थोड़ा सा झुकना चाहिए। वहीं भगवान के चऱणों की तरफ चार बार, नाभि की ओर दो बार, मुख की तरफ एक बार और शरीर के सभी अंगों की तरफ सात बार करना चाहिए। 

May 13, 2024 - 10:54
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Aarti Rules: संध्या आरती को चारों दिशाओं में दिखाना क्यों होता है जरूरी, जानिए क्या है इसका महत्व
हिंदू धर्म में पूजा-पाठ और आरती करने के लिए कई नियमों के बारे में बताया गया है। यदि इन नियमों का व्यक्ति सही तरीके से पालन करें, तो जातक के जीवन में सुख-समृद्धि और सौभाग्य का आगमन होता है। आरती के बिना कोई भी पूजा अधूरी मानी जाती है। कुछ लोग आरती करने के बाद दीपक पौधे के पास रखते हैं, जोकि वास्तु के हिसाब से शुभ माना जाता है।
 
इसके साथ ही मंदिर में संध्याकाल की आरती के बाद इसकी लौ को चारों दिशाओं में दिखाया जाता है। लेकिन क्या आप आरती के चारों दिशाओं में दिखाने का महत्व जानते हैं। अगर आपका जवाब न है, तो आज हम आपको इस आर्टिकल के जरिए इसके बारे में पूरी जानकारी देने जा रहे हैं।

इसे भी पढ़ें: Weekly Love Horoscope 13 to 19 May 2024 | ज्योतिषीय भविष्यवाणी, इन 3 राशियों का प्रेम जीवन शांतिपूर्ण रहेगा


आरती की लौ उत्तर दिशा में दिखाना
ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक उत्तर दिशा में भगवान शिव और कुबेर देव का वास माना जाता है। धार्मिक शास्त्रों में कुबेर देव को धन-संपत्ति का देवता माना गया है। वहीं यह दिशा भोलेनाथ को भी अतिप्रिय है। शाम को इस दिशा में आरती की लौ दिखाने से व्यक्ति को शुभ परिणाम मिलते हैं और सुख-समृद्धि का आगमन होता है।

आरती की लौ पश्चिम दिशा में दिखाना
वहीं शनिदेव की दिशा पश्चिम दिशा मानी जाती है। इस दिशा में संध्या के समय आरती दिखाने से जातक पर हमेशा शनिदेव की कृपा दृष्टि बनी रहती हैं। साथ ही व्यक्ति को शनिदोष से भी छुटकारा मिलता है।

आरती की लौ पूर्व दिशा में दिखाना 
पूर्व दिशा भगवान श्रीहरि विष्णु की दिशा मानी जाती है। इस दिशा में संध्या को आरती की लौ दिखाना चाहिए। इससे व्यक्ति पर श्रीहरि की कृपा दृष्टि बनी रहती है और व्यक्ति के सुख-सौभाग्य में वृद्धि होती है।

आरती की लौ दक्षिण दिशा में दिखाना
ज्योतिष में दक्षिण दिशा पितरों और यम देव की मानी जाती है। इस दिशा में आरती दिखाने से पितृ प्रसन्न होते हैं और व्यक्ति को अकाल मृत्यु के भय से छुटकारा मिलता है। इसलिए दक्षिण दिशा में संध्य़ा आरती दिखाएं।

आरती करने के नियम
आरती करने के दौरान व्यक्ति को एक स्थान पर खड़े होकर आरती करनी चाहिए। साथ ही आरती करते समय थोड़ा सा झुकना चाहिए। वहीं भगवान के चऱणों की तरफ चार बार, नाभि की ओर दो बार, मुख की तरफ एक बार और शरीर के सभी अंगों की तरफ सात बार करना चाहिए। 

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